कीट व बीमारियों से बचाव के लिए बुवाई से पहले शत-प्रतिशत बीज उपचार किया जाना जरूरी – आरपी शुक्ला

कीट व बीमारियों से बचाव के लिए बुवाई से पहले शत-प्रतिशत बीज उपचार किया जाना जरूरी – आरपी शुक्ला

रिपोर्ट सुरेन्द्र सिंह कछावह

चित्रकूट: जिला कृषि रक्षा अधिकारी आरपी शुक्ल ने कहा कि आगामी खरीफ फसलों की बुआई करते समय बीजशोधन पर विशेष ध्यान दें। फसलों के अनेक रोगों का प्रारम्भिक संक्रमण बीज या भूमि अथवा दोनों के माध्यम से होता है। रोग कारक फफूँदी व जीवाणु बीज से लिपटे रहते है या भूमि में पडे रहते हैं। बीज की सतह पर या बीज के अन्दर प्रमुत्तावस्था में मौजूद रहते है। इन्ही रोगों से बचाव के लिये बोने से पूवर् बीज में रसायनों का मिलना ही बीजशोधन कहलाता है। कृषको को कीट व बीमारियों से बचाव के लिए बुवाई से पहले शत-प्रतिशत बीज उपचार किया जाना जरूरी है। उन्होंने बताया कि बीज शोधन दो प्रकार से किया जाता है‌। रसायनिक विधि थीरम या काबेर्न्डाजिम 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज में मिलाकर किसी बतर्न में डालकर दवा एवं बीज को आपस में मिलाकर फिर बुआई करते हैं। जैविक विधि ट्राइ‌कोडमार् स्पोर 5 ग्राम प्रति किग्रा की दर से मिलाकर पानी के हल्के छीटें डालकर मिला लेते हैं। फिर अगले दिन बुआई करते हैं। बीजशोधन के लाभ, उवर्रता तथा उत्पादकता को बढाता है, मि‌ट्टी के लाभदायक जीवाणुओं को जीवित रखने में सहायता मिलती है, बीज से होने वाले रोगों से रक्षा होती है, वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थरीकरण होता है, मिटटी से पैदा होने वाली बीमारियों को कम करता और रोकता है। उन्होंने बताया कि रसायनिक विधि में रसायनों की निधार्रित मात्रा ही प्रयोग करनी चाहिये, जैव ऐजेन्टों से बीजशोधन के बाद बीजों को सूरज की गमीर् और धूप से बचाना चाहिये। बायो ऐजेन्ट से उपचारित बीज को रासायनिक उवर्रकों में नहीं गिलाना चाहिये। एक से अधिक प्रकार के शोधन करने में एफआईआर क्रम का प्रयोग करना चाहिये। जैविक ऐजेन्ट या बायो ऐजेन्ट जीवित जीवाणु होते हैं इसलिये इनकी निमार्ण तिथि तथा प्रयोग कर सकने की अन्तिम तिथि देखकर ही प्रयोग करना चाहिये। उन्होंने बताया कि भूमिजनित रोगों में ट्राइकोडमार् 2.50 किग्रा को 66 से 75 किग्रा गोबर की सडी हुई खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8 से 10 दिन तक छाया में रखने के बाद बुवाई के पूवर् आखरी जुताई पर भूमि में मिला देने से फफूँद से फैलने वाले रोग जैसे जड गलन, तना सडन, उकठा, करनाल बन्ट, अनावृत्त कण्डुवा, आवृत्त कण्डुआ, पाउडरी मिल्डयू, रूट रॉट, ब्लाइट एवं झुलसा जैसे रोगों का नियंत्रण हो जाता है। ब्यूवेरिया बैसियाना 1 प्रतिशत, डब्लूपी बायोपेस्टीसाइड की 2.50 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टेयर 65 से 75 किग्रा गोबर की सडी हुई खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8 से 10 दिन तक छाया में रखने के बाद बुवाई के पूवर् आखरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक, सफेद गिडार, कटवमर्, गुझिया वीविल, लेपीडाप्टेरस कीट एवं सूत्रकृमि का नियंत्रण हो जाता है। दीमक एवं सफेद गिडर कीट के नियंत्रण के लिए क्लोरोपाइरीफास 25 प्रतिशत ईसी 2.5 लीटर अथवा इमिडाकतोरपिड 17.8 प्रतिशत एसएल, 350 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें।
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