प्रभु श्रीराम हैं सत्य सनातन की अविराम यात्रा

प्रभु श्रीराम हैं सत्य सनातन की अविराम यात्रा

रिपोर्ट सुरेन्द्र सिंह कछवाह

चित्रकूट: मप्र खंडवा से पधारे पं. रमेशचन्द्र तिवारी ने कैकेई चरित्र पर व्याख्यान दिए। उन्होंने कहा कि कैकेई के बलिदान, तपस्या, तप अपने ऊपर जो कलंक, अपजश लिया उसके फलस्वरूप मयार्दा पुरुषोत्तम श्रीराम जन-जन के नायक एवं विश्व नायक बने। अगर कैकेई अपने ऊपर यह अपयश न लेती तो राम जन-जन के नायक नहीं बनते। इसलिए माता कैकेई को धन्य है। कैकेई ने महाराज दशरथ से चार वरदान मांग कर राम को वन भेजा जो जन और विश्व कल्याण का कारण बना।
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मुजफ्फपुर बिहार से पधारे ख्यातिलब्ध साहित्यकार डा. संजय पंकज ने राम की विशद व्याख्या करते हुए कहा कि संपूणर् भारतीयता के उदात्त चरित्रणाम अपने मानवीय फैलाव में वैश्विक हो जाते हैं। चाहे जो भी संदभर् या प्रसंग हो उसे आप अगर राम से सम्बद्ध करते हैं तो राम उसमे समग्रता में समाहित दिखलाई पड़ेंगें। पुत्र, भाई, पिता, जामाता, मित्र, राजा, वनवासी, योद्धा, पराक्रमी, उदार, करुणा जैसे संदभोर् में जब राम के जीवन का अध्ययन करेंगें तो पता चलेगा कि राम ने अपने हर रूप को अपने व्यवहार और सद्भाव से शिखर पर पहुंचाया है। रामलला की स्थापना के साथ ही संपूणर् संसार के लिए राम एक अलौकिकता मगर आत्मीयता के महाभाव के रूप में स्थापित हो गए हैं। डा. पंकज ने आगे कहा कि जीवन भर राम ने दुख और संकट झेला मगर कभी उससे ऊबे नहीं। उन्होंने दुख को जितना ही ओढ़ा उतना ही वे मजबूत हुए। वनवासी हुए तो अंतिम पायदान के मनुष्य का जीवन संघषर् देखा और समझा। हम केवल राम को एक आदशर् के रूप में ही नहीं बल्कि उनको एक व्यावहारिक पूणर् मनुष्य के रूप में स्वीकारते हैं। उनकी मनुष्यता का विस्तार ही उन्हे ईश्वर बना देता है। राम सत्य सनातन की अविराम यात्रा है।
सीता की जन्मभूमि सीतामढ़ी से आए हुए सेंट्रल बैक आफ इंडिया के अवकाश प्राप्त राजभाषा अधिकारी विमल कुमार परिमल ने राम की यात्रा का वणर्न करते हुए कहा कि मिथिला में आने से पहले राम का जीवन एक चक्रवतीर् राजा के राजकुमार के रूप में था। मगर मिथिला में प्रवेश करने के साथ ही उनके शौयर् और पराक्रम की शुरुआत हो जाती है। तपस्या करने वाले ऋषि-मुनियो की सुरक्षा के लिए उन्होंने राक्षसों के वध को धनुष उठाया तो विदेहराज जनक की नगरी में आते ही उनकी तरुणाई प्रेमिल भाव केे साथ जाग उठी। पुष्प वाटिका प्रसंग में सीता के दशर्न होते हैं और प्रेम का अंकुर फूटता है। उसी प्रेरणा से राम धनुभंर्ग करते हैं। वहीं भगवान परशुराम से उनका संवाद होता है। राम के भीतर का पुरुषाथर् मिथिला में जागृत होता है। सीता के रूप में साक्षात शक्ति का राम ने वरण किया। श्री परिमल ने सीता प्राकट्य की लंबी चचार् करते हुए कहा कि सब कुछ ईश्वरीय प्रेरणा से संपन्न हो रहा था। जहां सीता साक्षात् धरती थी, वहीं राम ब्रह्मांड नायक थे और आज भी दोनो भारतीय समाज के लिए सबसे बड़े आदशर् हैं।
सीतामढ़ी बिहार की शिक्षाविद् डा. आशा कुमारी ने सीता की पीड़ा का उल्लेख करते हुए कहा कि सीता ने राम के जीवन को अपना जीवन मान लिया। पत्नी का धमर् भी तो यही है, क्योंकि वह अर्द्धांगिनी होती है। राम को वनवास मिला तो सीता ने साथ रहना सहषर् स्वीकारा, क्योंकि भारतीय समाज में पति का सुख दुख पत्नी का भी सुख दुख होता है। राम और सीता दोनो अभिन्न हैं। सखी भाव के भक्त और कवि मोदलता जी ने सीता और राम को केन्द्र में रखकर विवाहोत्सव प्रचलन शुरू किया था। उनके पदो में सीता एक विदुषी, त्यागमूतिर् ओर आदशर् पत्नी के रूप में दिखलाई पड़ंती हैं। पिता के घर से आने के बाद पति के पूरे सम्बन्धों को सीता ने बहुत सहजता से स्वीकार लिया था। सीता तिरहुत की ऐसी संस्कृति है जिसे अवध की संस्कृति के नायक राम संपूणर् जीवन के लिए वरण करते हैं। डा आशा ने कई कारुणिक प्रसंगों को सुनाया और कहा कि स्वणर् मृग के कारण से सीता का हरण हुआ तो उन्हे स्वणर् नगरी लंका में रखा गया। जहां से उनकी मुक्ति हुई। सोने के मोह में सीता फंसी तो संकट में आईं ओर जब मोह भंग हुआ तो सोने की लंका को जलते हुए देखा। यह एक उदाहरण और प्रेरणा है कि चमक, दमक और भौतिक चाहनाआंे से उद्धार नहीं होता है बल्कि इससे मोह मुक्त होने के बाद सादगी में आत्मदशर्न होता है।