भारतीय विद्वानों व कलाकारों ने रामायण मेले में दिखाया अपना हुनर

भारतीय विद्वानों व कलाकारों ने रामायण मेले में दिखाया अपना हुनर

– पांच दिवसीय रामायण मेले का हुआ समापन

रिपोर्ट सुरेन्द्र सिंह कछवाह

चित्रकूट ब्यूरो: राष्ट्रीय रामायण मेले का समापन कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत जगद्गुरु स्वामी रामस्वरूपाचायर् महाराज ने करते हुए आयोजन की सफलता पर बधाई दी। कायर्कारी अध्यक्ष प्रशांत करवरिया ने माल्यापर्ण व शाल भेंटकर स्वागत किया। पांच दिवसीय समारोह में कला, संस्कृति, सभ्यता, विद्वता का अनूठा संगम देखने को मिला। कलाकारों की मनोहारी प्रस्तुतियों ने लोगों का दिल जीता तो विद्वानों के व्याख्यानों ने समाज को मयार्दा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदशोर् को जीवन में अपनाने का संदेश दिया। देश के विभिन्न प्रांतों से आए मानस ममर्ज्ञों की श्रीराम चरितमानस पर की गई समीक्षा ने लोगों को जीवन जीने की कला सिखाई।
मंगलवार को सीतापुर स्थित रामायण मेला मंडपम में चल रहे पांच दिवसीय 51वें राष्ट्रीय रामायण मेला महोत्सव के समापन अवसर में कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत जगदगुरु स्वामी रामस्वरूपाचायर् ने कहा कि यह मेला अंतरार्ष्ट्रीय स्तर का है, जिसकी सराहना कई देशों में होती है। उन्होंने चित्रकूट की भूमि को प्रेम की भूमि बताया। कहा कि अहंकार यदि जीवन में आया तो उसे कोपभाजन का शिकार होना पडेगा। चित्रकूटधाम की भूमि में प्रभु श्रीराम का मन एवं उनके सभी अंग यहां की रज से जुडे हुए हैं। इस भूमि को विनम्रता की भूमि बताया। कहा कि यहां के निवासियों को विनम्र बनना पडेगा। इस मौके पर जगदगुरु रामभद्राचायर् दिव्यांग विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. शिशिर कुमार पांडेय, शिवमंगल शास्त्री, प्रद्युम्न दुबे लालू, मनोज मोहन गगर्, विनोद मिश्र, राजेन्द्र मोहन त्रिपाठी, घनश्याम अवस्थी, मो यूसुफ, राम प्रकाश श्रीवास्तव, हेमंत मिश्रा, ज्ञानचन्द्र गुप्ता, सूरज तिवारी, कलीमुद्दीन बेग, नत्थू प्रसाद सोनकर, सत्येन्द्र पांडेय, इम्त्यिाज अली लाला, राजेन्द्र बाबू, घनश्याम अवस्थी, डा रामलाल द्विवेदी, रवि कौशल, विनोद पांडेय, मंसूर अली, विकास आदि मौजूद रहे।
मेले के समापर दिवस में हुई विद्वत सभा में विद्वानों के साथ पूरब और पश्चिमी भारत के विचारको ने भी मेले में प्रतिनिधित्व किया। सिलीगुडी के कवि मोहन दुकुन, हैदराबाद के बंगरैया शमार् सहित डाॅ पुट्टपतिर् नागपदमिनी, डाॅ निमर्ला देवी, डाॅ विजय लक्ष्मी, डाॅ जया वेंकटेश, पदमजा रानी आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। चेन्नई से पधारे डीजी वैष्णव कालेज के प्राध्यापक डाॅ. अशोक कुमार द्विवेदी ‘शान बनारस’ ने बताया कि श्रीराम पर संदेह करना अपनी स्मिता पर संदेह करने के बराबर है। श्रीराम ने हर क्षेत्रीय संस्कृतियों एवं अधिकारों का सम्मान किया है। जिसे आज के समाज को सीखना है। सभा की अध्यक्षता करते हुए सुल्तानपुर के गोस्वामी तुलसीदास साहित्य के ममर्ज्ञ साहित्यभूषण डाॅ सुशील कुमार पांडेय साहित्येन्दु ने कहा कि रामचरित मानस सामाजिक सद्भावना का संविधान तथा मानवता का मूल मंत्र है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामकथा के माध्यम से विश्व मानवता को प्रगति की मौलिक दृष्टि दी है। फैजाबाद के डाॅ हरि प्रसाद दुबे, बांदा के सुरेन्द्र सिंह आदि ने रामचरित मानस के आधुनिक संदभोर् को लेकर विभिन्न पद्यों पर प्रकाश डाला। देवघर से आई मानस मुक्ता यशोमती एवं मुजफ्फरनगर से पधारे रामदेव शमार् ने राम दरबार की मनोरम झांकी प्रस्तुत की। भिंड के डाॅ देवेन्द्र रामायणी, बांदा के राम प्रताप शुक्ल, बिहार के मुजफ्फरपुर के डाॅ संजय पंकज, लखनऊ के विजय शंकर भास्कर, सुल्तानपुर के डाॅ सुशील कुमार पांडेय, डाॅ आद्या प्रसाद सिंह, डाॅ ओंकारनाथ द्विवेदी आदि ने संस्कृति, हिन्दी तथा अन्य रामकथाओं से संबंधित विषयों पर प्रकाश डाला।
इस दौरान हुई सांस्कृतिक सभा में वृंदावन से आए श्री कृष्ण रामलीला संस्था के कलाकारों ने धनुष यज्ञ लीला का मनोहारी मंचन किया। दशर्कों से खचाखच भरा मंडपम तालियों की गड़गडाहट से गूंजता रहा। राजा जनक का विलाप सुन दशर्कों की आंखे भर आई। धनुष टूटते ही दशर्कों ने जय श्रीराम के जयघोष किए। परशुराम और लक्ष्मण संवाद देख दशर्क रोमांचित हो उठे। रामलीला के माध्यम से कलाकारों ने लोगों को मयार्दा, संयम, सहज स्वभाव, क्रोध पर अंकुश लगाने का संदेश दिया। सायंकालीन सांस्कृतिक संध्या का कायर्क्रम दशर्कों के आकषर्ण का केंद्र रहा। सुजाता केसरी प्रयागराज ने रामोत्सव पर नृत्य, कजली नृत्य, डेढ़िया नृत्य की प्रस्तुतियों से मंत्रमुग्ध कर दिया। मेनका मिश्रा लखनऊ ने मनमोहक लोक गीत प्रस्तुत किये। जिसकी लोगों ने जमकर सराहना की। इसके पश्चात बांदा से आई उभरती कथक नृत्यांगना अनुपमा त्रिपाठी ने अपनी प्रस्तुति से शमां बांध दिया। अनुपमा ने जयपुर घराने के शुद्ध कथक नृत्य, जिसमें कथक की पारंपरिक बंदिशें होती है प्रदशिर्त की। इसके बाद राम के जीवन से जुडे कथानको को नृत्य के माध्यम से जीवंत कर दिया। देर रात तक वृन्दावन रामलीला-रासलीला संस्था ने ब्रज की प्रसिद्ध लट्‌ठ‌मार व फूलो की होली का मंचन किया। दशर्को ने इस रसमयी प्रस्तुति का लुत्फ उठाया।